मृत्युभोज : एक वीभत्स कुरीति

केड़ली गांव में सामाजिक कुरीति मृत्युभोज का बहिष्कार की पहल !

केड़ली ग्रामवासियों ने सामाजिक कुरीतियों मृत्युभोज के क्षेत्र में एक अनोखी पहल की जो आने वाले समय में सारे आस पास के गाँवो के लिए प्रेरणा दायक साबित हो सकती है ।

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राजस्थान क्षेत्र में फैल रही सामाजिक कुरूतियों को बंद करने के लिये अब ग्रामीण जागरूक होने लगे है। रविवार को केड़ली गांव के ग्रामीणों की एक बैठक राजकीय प्राथमिक विद्यालय मोतीसरा नाडी में पूर्व सरपंच दीपाराम चौधरी की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई। जिसमें उपस्थित ग्रामीणों ने सर्व सम्मति से कई प्रस्ताव पारीत किए। बैठक में निर्णय लिया गया कि मृत्यु होने पर उस परिवार में 12 दिन तक किसी प्रकार का खाना आने वाले व्यक्तियों के लिये नहीं बनाया जाएगा। वहीं गांव में रीति के अनुसार शोक बैठक में थाली में रखी जाने वाली बीड़ी सीगरेट, गुटखा, डोडा, अमल आदि नहीं रखा जाएगा और ना ही इसकी मनुहार की जाएगी। गंगाप्रसादी के दिनएक ही समय का साधारण भोजन किया जाएगा। 12 दिन के अंदर रिश्तेदारों द्वारा दी जाने वाली चून्दड़ी नहीं ली जाएगी और न ही रिश्तेदारों को कोथलिया डाला जाएगा। बैठक की सीमा एक ही महिने तक रखी जाएगी। वहीं विवाह शादियों में डीजे भी बंद करने का निर्णय लिया गया। बैठक में निर्णय हुआ कि बारात आने पर नाश्ता प्लेट नहीं देने का भी निर्णय लिया गया। सीधा खाना खिलाया जाएगा।

बैठक में नारायणराम लॉयल , ईश्वरराम लॉयल , जगराम लॉयल ,मानाराम, पुखराज लॉयल , रामूराम जांगू, जेठाराम खाती, ओमप्रकाश जाखड़, चम्पाराम पंचार, चैनाराम कस्वां, मगनाराम मेघवाल, बालूराम मेघवाल आदि ने विचार रखें।

मृत्युभोज क्या है ?

भागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं ‘आत्मा अजर, अमर है. आत्मा का नाश नहीं हो सकता. आत्मा केवल युगों-युगों तक शरीर बदलती है.’ आत्मा का देह त्याग करने के बाद भौतिक जीवन में बहुत-से संस्कार किए जाते हैं. जिनमें से एक है मृत्युभोज या तेरहवीं है. दशकों पहले मृत्यु होने पर केवल ब्राह्मणों को भोज करवाया जाता था लेकिन बदलते समय में समाज के साथ जुड़ाव या लोक-लज्जा के कारण भी लोग मृत्युभोज का आयोजन करते हैं.

मृत्युभोज क्यों नहीं करना चाहिए?

जिसके अनुसार श्रीकृष्ण ने शोक की अवस्था में करवाए गए भोज को ऊर्जा का नाश करने वाला बताया है. महाभारत युद्ध होने को था. अतः श्री कृष्ण ने दुर्योधन के घर जा कर युद्ध न करने के लिए संधि करने का आग्रह किया, तो दुर्योधन द्वारा आग्रह ठुकराए जाने पर श्री कृष्ण को कष्ट हुआ और वह चल पड़े. दुर्योधन द्वारा श्रीकृष्ण से भोजन करने के आग्रह पर श्रीकृष्ण ने कहा कि ‘सम्प्रीति भोज्यानि आपदा भोज्यानि वा पुनैः’ अर्थात हे दुर्योधन – जब खिलाने वाले का मन प्रसन्न हो, खाने वाले का मन प्रसन्न हो, तभी भोजन करना चाहिए.लेकिन जब खिलाने वाले एवं खाने वालों के मन में पीड़ा हो, वेदना हो, तो ऐसी स्थिति में कदापि भोजन नहीं करना चाहिए. महाभारत के इस प्रसंग से बुद्धिजीवियों ने मृत्युभोज से जोड़कर देखा

थलांजु गाँव के रेवंत चौधरी के विचार मृत्युभोज : एक वीभत्स कुरीति पर

 

अधिक जानकारी के लिए अभिनव राजस्थान में इस कुरीति के कैसे अंत किया जायेगा जो नीच दिए गए लिंक पर पढ़े

मृत्युभोज : एक वीभत्स कुरीति :अभिनव राजस्थान

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