बधाई रामसुखराम जी घंटियाला और उनके पुत्रों को ।
संघर्ष एक किसान परिवार का । इनका उदाहरण गांव में प्रेरणादायक दृष्टि से कापी कुछ महत्व रखने वाला है ! रामसुखराम जी की शुरुवाती जिंदगी बिलकुल एक साधारण किसान की तरह से शुरू हुई , इनके परिवार में 4 बड़ी पुत्रियां और 2छोटे पुत्र है. जिंदगी की शुरुवात कठिन परिस्थितयियों के साथ गुजरी, जैसे-तैसे खेती से गुजारा करके और जब अकाल की हालात हो तब मजदूरी करके और दिनचर्या चले रही थी और धीरे -धीरे सभी बड़ी बेटियों की शादी कर दी गई ।
संकट की स्थिति तब आई जब भगवान् ने जो कुछ भी दिया हुआ था वो वर्ष 1999 में अचानक से 2 घंटे में छीन लिया , इनके मेहनत से बनाये हुए 3 कच्चे झोपड़ों में दोपहर में 1 बजे अचानक आग लग गई , और सब कुछ देखते ही देखते आँखों के सामने सब कुछ नष्ट हो गया था , और परिवार के पास एक शाम का गुजारा करने ले लिये कुछ् भी नही बचा !! जैसे तैसे कटुम्ब के सभी भाइयों और ससुराल वालों की मदद से वापिस बच्चों की आस पर जिंदगी जीने की शुरुवात की और वर्ष 2000 में दोनों बेटो की शादी करी और वर्ष 2001 में बड़े बेटेअणदाराम को 16 साल की उम्र में लकड़ी के काम के लिए मुंबई भेज दिया , जब अणदाराम ९ वीं क्लास की पढाई भी पूरी नही कर पाये और भाई अणदाराम ने जैसे – तैसे मेहनत करके और अपने काम का सारे गुर सीखे और वर्ष 2004 में छोटे भाई टिकूराम को भी साथ ले गए ।
इसके पीछे 16 साल की कड़ी मेहनत और लगन ने उनको इस मुकाम पर पहुँचाया है ,आगे भी भगवान् इनको खूब तरक्की दे ।
घन्यवाद और शुभकामनाएँ सभी ग्रामीणों की और से |